हम मन की बाते मानते हैं जो उसे अच्छा लगता है। मन से ही मति बनती है।

मनुष्य का मन बंधन और मोक्ष का कारण हैं। विषयासक्त मन बंधन हैं। निर्विषय मन मुक्ति माना जाता है। आदि शंकराचार्य ने भी लिखा है-मन को जीता तो जग को जीता। मन को हारा तो जग हारा। भगवद्गीता में कृष्ण ने
मन को नियंत्रित रखने के लिए अर्जुन को बहुत अच्छे उपदेश दिये हैं। मन के अंदर विषयों की काई जमी हुई है। पहले इस को स्वच्छ करना पड़ेगा। हमारा मन बहुत उपद्रवी है। चंचल है। एक क्षण भी स्थिर नहीं रहता। जिस तरह बंदर एक डाल से दूसरी डाल, फिर तीसरी डाल जाता है। ऐसा ही हमारा मन है। सुख-दुख भी मन की एक वृत्ति है।
मन को नियंत्रित रखने के लिए हमें अभ्यास करना पडे़गा। हमारा मन जब स्थिर होगा तभी वह एकाग्र होगा। हमें मन में वैराग्य लाने का अभ्यास करना चाहिए। कहते हैं-करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान। कृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा है मन को सबसे पहले जीतो। मैं मनुष्य के अंदर मन ही हूँ। मन ही इंद्रियों को आकर्षित करता है और विषयों का सेवन करता है। ये मन फंसाता है जगत के आकर्षणों में। सारी जिंदगी मनुष्य सुख और आनंद खोजता है और फिर संसार से विदा हो जाता है-अनेक जन्मों से हमारा मन भटक रहा है। परन्तु उसको सुख और आनन्द नहीं मिलता।
मन को नियंत्रित के लिए सत्संग सुनों, संतो की वाणी सुनो। फिर उसे जीवन में चरितार्थ करो अन्यथा कोई लाभ नहीं। संसार का सुख क्षणिक है परिणाम दुष्कर है। हमारे मन को काम, क्रोध, लोभ, मोह का आकर्षण रहता है और इस आकर्षण में फंसकर वह बड़े-बड़े अपराध कर बैठता हैं। हम दुनिया में आए दिन अपराध देख रहे हैं। मन लालच में फंसाता है। मन में विवेक की कमी है और याद रखिए बिन सत्संग विवेक न होई।
मन को नियंत्रित करके मनुष्य विवेक से काम करे तो उसको पछताना नही पड़़े़गा। मन की विषयासक्ति से ही हम जगत में बार-बार जन्म लेते है। यह संसार कांटो की बाडी़ है उलझी-उलझी मर जाना है। मन को ऊध्र्वगामी बनाओ। हम कौन है ये सबसे पहले जानों, हम भगवान का ही अंश हैं इसलिये हम भी आनन्द चाहते हैं। पर आनन्द कहां है ये खो, संत कबीर, मीरा, रैदास सबने संसार से मन हटाकर असली आनन्दपाया और अमर हो गये। आज दुनिया इन सभी को याद करती है। बस अपने मन को ईश्वर से जोड़ लो। फिर देखो तुम्हे जीने की नई ऊर्जा मिलेगी आनन्द मिलेगा। ईश्वर सर्वोच्च शक्ति है। उसने यह संसार बनाया है।