एक लड़का मिट्टी के बर्तन बनाने में अपने पिता की मदद करता था। अचानक उसके पिता की मौत के बाद चीज़े बदल गई। परिवार की सारी ज़िम्मेदारी लड़के पर आ गई। हालांकि वह मिट्टी के बर्तन बनाने में पिता की मदद करता था, फिर भी वह इस कला में पारंगत नहीं था। उसे संशय रहता कि घडे् ठीक बने हैं या नहीं, कोई खरीदार मिलेगा या नहीं? पहले दिन शाम तक उसका एक भी घड़ा नहीं बिका।
उसके पिता का दोस्त जो कि फल बेचता था, दूर से लड़के की मनोदशा समझ रहा था। पास आकर वह उससे बातचीत करने लगा, तभी एक लड़के की ठोकर से फलवाले का मटका गिर गया। उसने लड़के से ही घड़ा खरीदकर उसकी कुछ मदद करनी चाही। मिट्टी के बर्तन का मूल्य पचास रूपए सुनकर उसने कुछ विचार किया।
फलवाल ने मिट्टी के बर्तन का मोलभाव करते हुए उससे दाम कुछ कम करने को कहा। कुछ सोचने के बाद लड़का 30 रूपए में घड़ा देने को राजी हो गया। इसके बाद फलवाले ने फिर मोलभाव करते हुए कुछ देर सोचने के बाद पहले 20 फिर 10 में हां कर दी। पर फलवाले ने आखिर में उसे 50 रूपए ही दिए। रूपए देते हुए उसने लड़के से कहा,
उसके पिता का दोस्त जो कि फल बेचता था, दूर से लड़के की मनोदशा समझ रहा था। पास आकर वह उससे बातचीत करने लगा, तभी एक लड़के की ठोकर से फलवाले का मटका गिर गया। उसने लड़के से ही घड़ा खरीदकर उसकी कुछ मदद करनी चाही। मिट्टी के बर्तन का मूल्य पचास रूपए सुनकर उसने कुछ विचार किया।
फलवाल ने मिट्टी के बर्तन का मोलभाव करते हुए उससे दाम कुछ कम करने को कहा। कुछ सोचने के बाद लड़का 30 रूपए में घड़ा देने को राजी हो गया। इसके बाद फलवाले ने फिर मोलभाव करते हुए कुछ देर सोचने के बाद पहले 20 फिर 10 में हां कर दी। पर फलवाले ने आखिर में उसे 50 रूपए ही दिए। रूपए देते हुए उसने लड़के से कहा,
‘मैं तुम्हारे पिता का मित्र हूं इसलिए समझा रहा हूँ कि कभी भी मिट्टी के बर्तनों को कम मत आंको। व्यापार में लागत और श्रम के साथ मुनाफ़ा भी जरूरी है। अगर ख़ुद के काम को कम आंकोगे, तो लोग भी तुम्हारे काम को महत्व नहीं देंगे।
मिट्टी के बर्तन - कहानी - अपने को कम मत आंको
Reviewed by Lancers
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July 02, 2018
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